छपते छपते.......

बहुतों से सुन चुके होंगे, लीजिये हम भी कहे देते हैं......




शुभ दीपावली


असल में कल इस नामुराद कॉलेज की कैद से कुछ दिनों के लिए मुक्ति मिल जायेगी, अतः सम्भावना कम ही है कि कल चलते-चलते कोई पोस्ट कर पाऊँ। और अगर कर भी पाया तो क्या पता कब तक छपे. खैर मेरी तरफ़ से सभी मित्रों, अमित्रों को भी दीपावली की शुभकामनाएं...
अब नवम्बर में ही मुलाकात हो पायेगी...

चलते-चलते चिरागों की बात पर दुष्यंत जी के चंद सफे याद आ गए,आज के हालात पर सटीक बैठतें है... आप भी गौर फरमाइए.........





कहाँ तो तय था चिरागां, हरेक घर के लिए,
कहाँ
चिराग मयस्सर नहीं, शहर के लिए।

वे मुतमईन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए।


चलिए देखते हैं मुल्क का हर घर खुलूस के चिरागों से कबतक रोशन हो पाता है... आप अपना घर रोशन करना न भूलिएगा । शुभ दीपावली।
3 Responses
  1. आप को भी दिवाली की खुशियाँ मुबारक हों
    दोनों शेर भी बहुत अच्छे हैं


  2. दीपावली का यह त्यौहार तुम्हारी ओर से हम लोगों के लिए एक शानदार तोहफा लेकर आया है। यह प्यारा सा ब्लॉग...। तुम्हें इसके लिए ढेरों आशीष। यह दीपक तुम्हारे जीवन को दिग-दिगन्त तक प्रकाशित करता रहे, और तुम्हारे सद्‌विचारों से यह दुनिया चिर काल तक प्रकाशित होती रहे यही शुभकामना है।


  3. कार्तिकेय को यहाँ देखना बड़ा सुखद और अह्लादकारी है।
    इनकी प्रतिभा के हम पहले से कायल हैं। इनके बचपन से इन्हें देखा है, सराहा है, और इनसे बड़ी-बड़ी उम्मीदें की हैं।

    बढ़ती उम्र के साथ इनसे हमारी ख्वाहिशें भी परवान चढ़ रही हैं। आशा है, ये सदा की भाँति उन्हें पूरा करने में सफल होंगे।

    कार्तिकेय,
    तुम्हारी सभी पोस्टें पढ़ डाली हैं। शानदार शुरुआत हुई है। शाबास! अब कुछ बातें नोट करो -

    सबसे पहले ये word verification का लफड़ा हटा लो। सेटिंग्स में जाकर इसके ‘no’ ऑप्शन को सेलेक्ट करके save कर लो। बस छुट्टी...। इसका फायदा कुछ नहीं है। नुकसान बहुत है। यह टिप्पणीकारों को अटकाता है।

    @प्रयास निरीह है, लघु है. सहमति-असहमति के स्वर ही इसे सार्थकता प्रदान करेंगे....

    इसमें सच्चाई कम है और humility अधिक है। कोई प्रयास लघु नहीं होता, निरीह तो कतई नहीं होता है। ‘टिप्पणी’ मूल्यांकन का सही आधार नहीं हो सकती। शुरुआत में इससे हमारे मूल्य का थोड़ा पता तो चलता है, लेकिन सही या असली मूल्य का पता कदाचित्‌ नहीं चल पाता। इसमें लम्बा समय लग सकता है। फिर भी ‘प्रयास की सार्थकता’ अपने स्थान पर कायम रहती है; तब भी, जब कोई भी टिप्पणी न मिले।

    वैसे भी टिप्पणियों का गणित बहुत उलझाने वाला है। इस विषय पर ब्लॉगजगत में बहुत कुछ लिखा जा चुका है।

    अपनी पूरी क्षमता व ईमानदारी से लिखने की कोशिश करो, इसी की पहचान कायम रहती है। और हाँ, जितना लिखो उससे कई गुना पढ़ने की कोशिश करो। सफलता तुम्हारा द्वार जरूर खटखटाएगी।

    हार्दिक शुभकामनाएं।


मेरे विचारों पर आपकी वैचारिक प्रतिक्रिया सुखद होगी.........

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    पेशे से पुलिसवाला.. दिल से प्रेमी.. दिमाग से पैदल.. हाईस्कूल की सनद में नाम है कार्तिकेय| , Delhi, India

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