बेहतर होगा मैं न लिखूँ..




 कई दिनों से सोच रहा था, कि कुछ लिखूँ
कितना तो घट रहा है चारों ओर,
कितना तो सर की सरहदों में घुमड़ रहा है,
असंख्य अनुभूतियाँ, गंध, आवाजें, इमेजेस..



  
किस पर लिखूँ?
बंद चैनल के पार टकटकी बाँधे त्रिपोली की उस छ: साल की लड़की पर
टकटकी एक लहूलुहान लाश पर/जो शायद उसका पिता था,
और माहौल में नुमायां फ़ौजी बूटों की क़दमताल, एक-दो-एक


या फिर लिखूँ पेट्रोल की आग में धुआँ होते मुहम्मद बौज़िजी पर,


या फिर लिखूं उम्मीद पर-
एक आदिवासन की उम्मीद पर, कि एक दिन उसका बेटा स्कूल में होगा
न कि दण्डकारण्य/लालगढ़ के जंगलों में,
और उसके गाँव से गुज़रने वाली चौड़ी सड़क वहाँ से कोयला/अभ्रक ले जाने के लिये ही बस नहीं होगी
बल्कि लेकर भी आयेगी- डिस्पेंसरी, डॉक्टर, और मलेरिया की दवायें


या फिर लिखूँ नैनीताल की उस शाम पर-
जब गहराती शाम में बादल हमें छूकर गुज़र रहे थे
और उस ठंडी बेंच पर भीगते हुए तुमने फुसफुसाकर मेरे कानों में कहा था-
ये पहाड़ कितने अपने लगते हैं..? है ना..!


लेकिन नहीं, मैं प्रेम पर नहीं लिख सकता..!
तब, जबकि फूकूशिमा कभी भी पिघल सकता है,
और बेनगाज़ी में सत्ता समर्थक मिलीशिया कभी भी घुस सकती है...
तब, जबकि उन चौड़ी सड़कों से पलामू में अभी तक केवल पहुँच पाये हैं पेप्सी और रिचार्ज कूपन,
और विदर्भ में लाखों भूमिहीनों के पास सल्फास खरीदने के भी पैसे नहीं बचे हैं...
तब , जबकि इस वसंत रात्रि में प्रतिपल पास आता चाँद तुम्हारी याद दिला रहा है,
पर मैं डर रहा हूँ पूर्णिमा को संभावित ज्वार की ऊँचाई से...


मैं प्रेम पर कैसे लिख सकता हूँ..?
जब छ: सौ भूकम्प के झटकों और सुनामी के बाद धरती अपनी धुरी से खिसक गई है,
और तब, जबकि हमारे हमारे समय की सच्चाई के नेज़े हमारे ही सीनों में पैवस्त हुए जा रहे हैं..


बेहतर होगा मैं न लिखूँ..
10 Responses
  1. मित्र हालात बहुत संगीन हैं. विशेषत: भारत में, जहां हमें स्वयं ही कुल्हाडी पर गर्दन रखकर यह कहना सिखाया जाता है कि बढ़िया से काटना. अनार्की का दौर है. एक नये माडीफाइड वर्जन की इमरजेन्सी सी. दोषी वे हैं, जिनके लिये जिम्मेदारी सौंपी गयी और फिर उसका नाजायज फायदा उठाया. वसुधैव कुटुम्बकम का नारा देने वाले देश की यह हालत. तुम्हारे विचार कहीं किसी ज्वालामुखी के फूटने की भविष्यवाणी करते हुये दिखाई दे रहे हैं.


  2. Padm Singh Says:

    अद्भुद !


  3. बहुत ही संवेदनात्मक पोस्ट, आप ऐसे ही अपने न लिखने पर ही लिखते रहें।


  4. काश इतनी फिक्र मनमोहन सिंह को होती, या फिर ओबामा को...


  5. वाकई हालात ऐसे हैं...
    जब लिखे जाने से बेहतर..कुछ किया जाना जरूरी लगता है...


  6. कार्तिकेय, बहुत इंतज़ार के बाद कुछ लिखा है और इस न लिखने से अच्छा और क्या लिखा जा सकता था?


  7. इन पर ना लिखना गलत होता


  8. ***Punam*** Says:

    मन कई बार ऐसे उपापोह में फंस जाता है
    एक साथ ढेर सारे विचार गडमड होने लगते हैं...
    कई विषयों पर चाह के भी नहीं लिख पाते..
    फिर भी न लिखते-लिखते भी कुछ लिखा ही जाता है...!!
    इसीप्रकार लिखते रहें....!!


  9. कतई बेहतर नहीं होगा...आप लिखें और खूब लिखें...ऐसी प्रतिभा हर किसी के भाग्य में नहीं लिखी होती...इस बेजोड़ रचना के लिए बधाई स्वीकारें
    नीरज


  10. Unknown Says:

    bohot bohot bohot sunder sirji!!!


मेरे विचारों पर आपकी वैचारिक प्रतिक्रिया सुखद होगी.........

    Review My Blog at HindiBlogs.org

    अपनी खबर..

    My photo
    पेशे से पुलिसवाला.. दिल से प्रेमी.. दिमाग से पैदल.. हाईस्कूल की सनद में नाम है कार्तिकेय| , Delhi, India

    अनुसरणकर्ता

    Your pictures and fotos in a slideshow on MySpace, eBay, Facebook or your website!view all pictures of this slideshow

    विजेट आपके ब्लॉग पर

    त्वम उवाच..

    कौन कहाँ से..